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कविता

मेरी अलमारी

फहीम अहमद


बहुत बड़ी मेरी अलमारी
चीजें इसमें रखीं सारी।

सबसे ऊपर प्यारा बस्ता
और बगल में है गुलदस्ता।

पास उसी के फोटो मेरा
रसगुल्ले सा दिखता चेहरा।

नीचे गाड़ी चाबी वाली
गुड्डा रोज बजाए ताली।

रखी हँसने वाली गुड़िया
खटमिट्ठे चूरन की पुड़िया।

उसके नीचे कई किताबें
कुछ हैं बिलकुल नई किताबें।

बैट-बॉल है सब से नीचे
लैपटॉप है उसके पीछे।

तुम्हें दिखा दीं चीजें सारी
बंद करता हूँ अब अलमारी।


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